*ओशो* , 
 *गजब* का *ज्ञान* दे गये ,

 *करोना* जैसी *जगत* *बिमारी* के  लिए
🙏👇👇👇🙏

☘☘ *70*  के *दशक*  में  *हैजा* *महामारी* के रूप में पूरे *विश्व* में फैला तब *अमेरिका* में किसी ने *ओशो* *रजनीश* *जी* से  प्रश्न  किया

-इस *महामारी* से कैसे  बचे ?
और *ओशो* ने विस्तार से समझाया जो आज *कोरोना* के। *सम्बंध* में भी बिल्कुल  *प्रासंगिक* है ,

🌹 *ओशो* ...
 यह *प्रश्न* ही 
आप *गलत*  पूछ रहे हैं , 

 *प्रश्न* ऐसा होना चाहिए था , *महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए ?* 
इस *डर* से  कैसे बचा  जाए.. *?* '

क्योंकि  *वायरस* से *बचना* तो बहुत ही *आसान* हैं , 

लेकिन जो *डर* आपके और *दुनिया* के *अधिक* *लोगों*  के *भीतर* बैठ गया है, उससे  *बचना* बहुत ही  *मुश्किल* है  ।

अब ,  इस *महामारी*  से  कम 
लोग इस *डर* के कारण ज्यादा *मरेंगे* .......।

 ' *डर* ' से ज्यादा *खतरनाक* इस *दुनिया* में कोई भी *वायरस* नहीं है ।

इस *डर* को समझिये, 
अन्यथा *मौत* से पहले ही आप एक *जिंदा* लाश  बन जाएँगे । 

यह जो *भयावह* *माहौल* आप अभी देख रहे हैं इसका *वायरस* आदि से कोई *लेना* *देना* नहीं है ।

 *यह एक सामूहिक पागलपन है,* जो एक *अन्तराल* के बाद हमेशा घटता रहता है  ।  कारण *बदलते* रहते हैं, कभी *सरकारों* की *प्रतिस्पर्धा* , कभी *कच्चे* *तेल* की कीमतें कभी *दो* देशों की *लड़ाई* तो कभी *जैविक* हथियारों की *टेस्टिंग* !!

 इस तरह का *सामूहिक* *पागलपन* समय-समय पर *प्रगट* होता रहता है । *व्यक्तिगत* *पागलपन* की तरह, *कौमगत* , *राज्यगत* , *देशगत* और *वैश्वीक* *पागलपन* भी होता है ।

 इस में *बहुत* से लोग या तो हमेशा के लिए *विक्षिप्त* हो जाते हैं या फिर *मर* जाते हैं ।

 ऐसा पहले भी *हजारों* बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा । और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में *युद्ध* *तोपों* से नहीं बल्कि *जैविक* हथियारों से लडे जाएंगे

🌹लेकिन में फिर कहता हूं हर *समस्या* *मूर्ख*  के लिए *डर* होती है  जबकि *ज्ञानी* के लिए *विद्वानों* के लिए *अवसर* !!
इस *महामारी* में आप *घर* बैठिए, *पुस्तकें* *पढिये* *,* *एक्सरसाइज* कीजिये  शरीर को *कष्ट* दीजिए , *व्यायाम* कीजिये, *फिल्में* देखिये , *योग*  कीजिये एक माह में *15* किलो वजन घटाइए , चेहरे  पर बच्चों जैसी ताजगी लाइये
अपने *शोंक* पूरे कीजिए मुझे अगर *15* दिन घर  बैठने को कहा जाए तो में इन *15* दिनों में *30* पुस्तकें पढूंगा

और नहीं तो एक *बुक* लिख डालिये, इस *महामन्दी* में पैसा *इन्वेस्ट* कीजिये  ये अवसर है  जो *बीस* *तीस* साल में एक बार आता है  *पैसा* बनाने का सोचिए
कहां *बीमारी* की बात  करतें  है ,

 *ये ' भय और भीड़ ' का मनोविज्ञान सब के समझ  नहीं  आता हैं ।* 

' *डर* ' में रस लेना बंद कीजिए...

आमतौर पर हर आदमी *डर* में थोड़ा बहुत रस लेता है , अगर *डरने* में मजा नहीं आता तो लोग *भूतहा* फिल्म देखने क्यों जाते ?


☘ ये  एक *सामूहिक* *पागलपन* है जो *अखबारों* और *TV* के माध्यम से *भीड़* को बेचा जा रहा है
 लेकिन *सामूहिक* *पागलपन* के *क्षण* में आपकी *मालकियत* छिन सकती हैं... आप *महामारी* से *डर* सकते है तो आप भी *भीड़* का ही हिस्सा है


 *ओशो* कहते है... *tv* पर खबरे सुनना ये *अखबार* पढ़ना बंद करें
ऐसा कोई भी *विडियो* या *न्यूज़* मत देखिये जिससे आपके भीतर *डर* पैदा हो.. 
 *महामारी* के बारे में बात करना *बंद* कर दीजिए, 

 *डर* भी एक तरह का *आत्म* *-* *सम्मोहन* ही है। 
एक ही तरह के *विचार* को बार-बार *घोकने* से *शरीर* के भीतर *रासायनिक* बदलाव  होने लगता है और यह *रासायनिक* बदलाव कभी कभी इतना *जहरीला* हो सकता है कि आपकी *जान* भी ले   ले  ;

 *महामारी* ओ  के अलावा भी बहुत कुछ *दुनिया* में हो रहा है, उन पर *ध्यान* दीजिए  ;

 ' *ध्यान* *-* *साधना* '  से *साधक*  के  चारो तरफ  एक  *प्रोटेक्टिव* *Aura* बन  जाता है , 

जो *बाहर* की *नकारात्मक* *उर्जा* को उसके भीतर *प्रवेश* नहीं करने देता है
अभी पूरी *दुनिया* की  *उर्जा* *नाकारात्मक*  हो चुकी  है .......

ऐसे में आप कभी भी इस  *ब्लैक* *-* *होल* में  गिर  सकते  हैं ....  ध्यान की *नाव* में बैठ कर हीआप इस *झंझावात* से बच सकते हैं ।

 *शास्त्रों* का *अध्यन*  कीजिए, 
साधू  *संगत* कीजिए,  और *साधना* कीजिए... *विद्वानों* से  सीखें

 *आहार* का भी *विशेष*  ध्यान  रखिए- *स्वच्छ* *जल*  पीए  ,

 *अंतिम* *बात* *-* 
 *धीरज* रखिए... *जल्द*  ही सब  कुछ *बदल*  जाएगा.......

जब  तक *मौत* आ ही  न  जाए 
तब  तक  उससे  *डरने* की  कोई ज़रूरत नहीं  है  और  जो *अपरिहार्य*  है उससे  *डरने*  का कोई *अर्थ* भी  नहीं  है, 

 *डर* एक  प्रकार की  *मूढ़ता*  है
अगर किसी  *महामारी* से अभी नहीं भी मरे  *तो*  भी एक न एक दिन मरना ही होगा , और वो एक दिन ,  कोई भी  दिन  हो सकता है ,
 इसी लिए  *विद्वानों* की तरह *जीयें* *भीड़* की तरह  नहीं !!

🎖☘ *ओशो*
 *में*  " *जीना* *सिखाता हूं ' किताब  से "*🙏